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अँधा था मैं

पर शायद अँधा था मैं
आखों से नहीं बल्कि दिल से

मैं देख नहीं पाया
तुम्हारा झूट जो छिपा था
तुम्हारे हर सच के पीछे

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महफिले

छत पर बैठकर जो सस्ते समोसे खाये थे तुम्हारे साथ,
आजकल इन मेहेंगी महफिलों में उनकी महक तलाशता हु.

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लफ्जों

लफ्जों का काम है दिल को जुबां तक लाना.
फिर क्या फर्क पड़ता है,
की लफ्जों ने हिंदुस्तानी धोती पहनी है या विलायती कोट.

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डायरी

पुरानी चीज़ों मे तुम्हारी डायरी मिली मुझे आज
सोचा खोल दूँ और पढ़ लूँ तुम्हारे सारे राज़
पर मैं तहर ज़िद्दी
मुझे गुमान इतना अपनी दिल-नवाज़ी पर
वह डायरी क्या अलग बताती मुझे जो
तुम्हारी आखों मे मैं नहीं पढ़ सकता था

Hindi, Poems, WriteUps

दस्तूर

उस सड़क पर फिर चल पड़े?
जो इस दुनिया की कम, हमारी ज़्यादा थी.
जहाँ रात बिन दरवाज़ा ठक-ठकाए आ जाती।
और सुबह बेनिक़ाब चली जाती थी.
ये कैसा दस्तूर है इस दुनिया का?
होठों पे हंसी आती नहीं है और
माथे पर शिकन घर बना जाती है.

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किस्मत

तुम्हरा पता पूछते पूछते,
अपने ही घर लौट आया .
खुश हो ही रहा था की,
किस्मत ने किराया बढ़ा दिया.

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हौसला

हौसला था इतना कि चाँद को फलक से उतार लाते,
पर सितारों का ख्याल किया,
वो शायद हमसे ज्यादा अकेले हो जाते.